Madhu varma

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लेखनी कविता - आकाशगंगा - बालस्वरूप राही

आकाशगंगा / बालस्वरूप राही


गंगा एक यहाँ बहती है, एक वहाँ आकाश में।

धरती की गंगा है निर्मल,
शर्बत से मीठा इसका जल,
हर प्यासे की प्यास बुझाती,
भारत का इतिहास सुनाती,

इसकी अच्छाई आई थी गांधी और सुभाष में।

नभ की गंगा तारों वाली,
चाँदी रचे किनारों वाली,
रंगों भरी फुहारो वाली,
चमकीली मँझधारों वाली,

हमें रात भर नहलाती है ठंडक भरे प्रकाश में।
गंगा एक यहाँ बहती है एक वहाँ आकाश में।

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